मंगलवार, 5 जून 2012

प्रारब्ध की नियति ?

धूसरित मरणासन्न  देखे हैं बुध प्रायोजित वक्तव्य तेरे
भार्गव  भावों को भौम शर- बिंध भी देखा है.
क्यों शब्द का उत्तर मत मांग....
       हर तर्क को समर्पण चूंकि करना होगा.
वह प्रारब्ध रज्जु से तुझे घसीटे जाय.
तेरे रुकने पे चले,तू चले तो थमे.
मुस्कानों से दुशकाट्य सा विषाद-परबत................,
आज हंसने के लिए तुझे रोना होगा .